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भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर प्रभु का प्राकट्य होता हैः ममगाईं

नन्द घर आनंद भयो कृष्ण जन्म जन्म की धूम रही

देहरादून।  हरिद्वार वाई पास रोड बदरीविशाल होम स्टे में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण के चतुर्थ दिवस पर ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगांई जी ने कहा, भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर प्रभु का प्राकट्य होता है तब जब शुद्धान्तकरण हो तो दुःख रूपी बन्धन से मुक्त करने आते हैं। भगवान यह कथा विना जोशी डाक्टर कुशाग्र सृष्टी प्रवीन ममगांई कामाक्षी के द्वारा आयोजित जिसमें व्यास जी कुछ जीवन में अनुकूलता के लिए यह बातें कही जिसके पालन से लाभ होता है।
आचार्य ममगांई बोले भोगों की कामना द्वारा जिनके ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उसकृउस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात् पूजते हैं। मनुष्य की अलग-अलग कामनाओं को पूरा करने के लिए हिंदू शास्त्रों में अलग-अलग देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है। श्रीमद्भागवत महापुराण के द्वितीय स्कन्ध के तृतीय अध्याय में मनुष्य की विभिन्न कामनाओं के अनुसार विभिन्न देवीकृदेवताओं की उपासना का निरूपण हुआ है।
श्री शुकदेव जी कहते हैं कृ जिसे लक्ष्मी चाहिए वह माया देवी की, जिसे तेज चाहिए वह अग्नि की, जिसे धन चाहिए वह वसुओं की और जिस प्रभावशाली पुरुष को वीरता की चाह हो उसे रूद्रों की उपासना करनी चाहिए। सौन्दर्य की चाह से गंधर्वों की, पत्नी की प्राप्ति के लिए उर्वशी अप्सरा की और सबका स्वामी बनने के लिए ब्रह्मा की आराधना करनी चाहिए। जिसे यश की इच्छा हो, वह यज्ञ पुरुष की, जिसे खजाने की लालसा हो, वह वरुण की, जिसे विघा प्राप्त करने की आकांक्षा हो भगवान शंकर की और पतिकृपत्नी में परस्पर प्रेम बनाए रखने के लिए पार्वती जी की उपासना करनी चाहिए। उन्होंने कहा धर्म-उपार्जन के लिए विष्णु भगवान की, वंशकृपरंपरा की रक्षा के लिए पितरों की और बलवान होने के लिए मरुद्गणों की आराधना करनी चाहिए।
आज आयोजनकर्ताओं के द्वारा भगवान कृष्णा जन्म की दिव्य झांकी निकाली गयी जिसमे नन्द के आनंद भयो आदि भजनो पर झूमते हुए लोग ओर माखन ओर मिश्री के प्रसाद से ओतप्रोत वातावरण गोकुल जैसा प्रतीत हुआ।
इस अवसर पर श्रीमती बीना जोशी डॉ कुशाग्र सृष्टि शर्मा अश्विनी मुंडेपी प्रवीण मामगाई नीलम पांडे कामाक्षी मामगाई वीरेंद्र मियां अंकित ममगांई अश्वनी मुण्डेपी सरोजनी सेमवाल भक्तगण भारी संख्या में उपस्थित थे।

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