क्यों होता है गणेश विसर्जन, कैसे बढा इसका चलन.. जानिए
हरिद्वार (अनिल गुप्ता)।
गणेश चतुर्थी के बारे में लगभग हर वह व्यक्ति ये भी जानता है कि गणेश चतुर्थी को स्थापित की जाने वाली गणपति प्रतिमा को ग्यारहवें दिन यानी अनन्त चतुर्दशी के दिन किसी बहती नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित भी किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि आखिर गणपति विसर्जन किया क्यों जाता है। गणपति विसर्जन के संदर्भ में अलग-अलग लोगों व राज्यों में मान्यताऐं भी अलग-अलग हैं, जिनमें से कुछ को हमने यहां बताने की कोशिश्ा की है।
हिन्दु धर्म के अनुसार ईश्वर सगुण साकार भी है और निर्गुण निराकार भी और ये संसार भी दो हिस्सों में विभाजित है, जिसे देव लोक व भू लोक के नाम से जाना जाता है। देवलोक में सभी देवताओं का निवास है जबकि भूलोक में हम प्राणियों का।
देवलोक के सभी देवी-देवता निर्गुण निराकार हैं, जबकि हम भूलोकवासियों को समय-समय पर विभिन्न प्रकार की भौतिक वस्तुओं, सुख-सुविधाओं की जरूरत होती है, जिन्हें देवलोक के देवतागण ही हमें प्रदान करते हैं और क्योंकि देवलोक के देवतागण निर्गुण निराकार हैं, इसलिए वे हम भूलोकवासियों की भौतिक कामनाओं को तब तक पूरा नहीं कर सकते, जब तक कि हमारी कामनाऐं उन तक न पहुंचे और भगवान गणपति हमारी भौतिक कामनाओं को भूलोक से देवलोक तक पहुंचाने का काम करते हैं
वेदव्यास ने सुनाई थी कथा
हिंदु धर्म के अनुसार भगवान श्रीगणेश को सभी देवी देवताओं में प्रथम पूज्य माना गया है। भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना गया है। हर मंगल कार्य में उन्हें सबसे पहले मनाया जाता है। भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। यही कारण है कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति की पूजा-अर्चना कर गणपति-प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश चतुर्थी से लगातार दस दिनों तक महाभारत कथा भगवान श्रीगणेश को सुनाई थी। इसे भगवान श्रीगणेश ने लिखा था।
बंद थी व्यास जी की आंखे
जब वेदव्यास जी कथा सुना रहे थे तब उन्होंने अपनी आखें बंद कर रखी थी। उन्हें पता ही नहीं चला कि कथा का गणेश जी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। जब महर्षि ने कथा पूरी कर आंखें खोली तो देखा कि लगातार 10 दिन से कथा सुनते-सुनते गणेश जी का तापमान बहुत अधिक बढ़ गया है। उन्हें ज्वर हो गया है। महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर डुबकी लगवाई। जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ। माना जाता है भगवान गणपति गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक सगुण साकार रूप में इसी मूर्ति में स्थापित रहते हैं। जिसे गणपति उत्सव के दौरान स्थापित किया जाता है।
कान में कहने से होती है मनोकामना पूरी
मान्यता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणेश स्थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन.सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।
इसलिए कहते है मोरया
गणपति बप्पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरूप माना जाता है। गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्याचार से बचने के लिए देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया। सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को वाहन चुना और छह भुजाओं का अवतार धारण किया। इस अवतार की पूजा भक्त गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं।
कैसे बढा इसका चलन
आजादी की लड़ाई के दौरान भारतीयों को एक जुट करने के लिए गणेशोत्सव का सहारा श्री बाल गंगाधर तिलक लिया। गणेशोत्सवआज से 100 बरस पूर्व अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए आयोजित किया था जो कि धीरे-धीरे पूरे राष्ट्र में मनाया जाने लगा है।
कुछ वर्षों पहले तक गणेश महोसत्व की धूम महाराष्ट्र में होती थी,लेकिन अब इसने भव्य रूप ले लिया है और पूरे देश में यह त्योहार बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है।